नई दिल्ली. भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व स्टार और 1983 विश्व कप विजेता टीम के सदस्य रोजर बिन्नी को मंगलवार (17 अक्टूबर) को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) का 36वां अध्यक्ष बनाया गया. मुंबई में बीसीसीआई एजीएम में उनकी नियुक्ति की घोषणा की गई. बिन्नी ने भारत के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली की जगह ली है. 67 वर्षीय रोजर बिन्नी बीसीसीआई अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करने वाले एकमात्र उम्मीदवार थे.
जय शाह बीसीसीआई सचिव के रूप में काम करना जारी रखेंगे. अरुण धूमल कोषाध्यक्ष का पद खाली करेंगे. आशीष शेलार को कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है. राजीव शुक्ला उपाध्यक्ष होंगे जबकि देवजीत सैकिया संयुक्त सचिव होंगे. निवर्तमान कोषाध्यक्ष अरुण धूमल आईपीएल के नए अध्यक्ष होंगे.
पदाधिकारियों के अगले समूह का चुनाव केवल एक औपचारिकता थी, क्योंकि सभी का निर्विरोध चुना जाना तय था. रोजर बिन्नी अपने हालिया कार्यकाल में कर्नाटक राज्य क्रिकेट संघ के अध्यक्ष थे और अब राज्य निकाय में अपना पद छोड़ देंगे. मीडियम पेसर 1983 में भारत की ऐतिहासिक विश्व कप जीत के नायकों में से एक हैं. उन्होंने वर्ल्ड कप के दौरान 8 मैचों में 18 विकेट लिए थे, जो प्रतिष्ठित टूर्नामेंट के उस संस्करण में सबसे अधिक थे.
बता दें कि आईसीसी शीर्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 20 अक्टूबर है. आईसीसी बोर्ड की 11-13 नवंबर को मेलबर्न में बैठक होगी. बीसीसीआई से गांगुली के बाहर होने न केवल खेल में बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में भी ध्यान आकर्षित किया है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पूर्व कप्तान को शीर्ष पद के लिए भेजा जाता है.
रोजर बिन्नी ने पूर्व में वरिष्ठ चयन समिति के सदस्य के रूप में कार्य किया है, जब संदीप पाटिल अध्यक्ष थे. जब भी उनके बेटे स्टुअर्ट बिन्नी का नाम भारतीय टीम में चयन के लिए चर्चा में आता, तो वह खुद को कार्यवाही से अलग कर लेते.
इससे पहले न्यूज एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, गांगुली ने पिछले हफ्ते नई दिल्ली में हितधारकों के साथ कई बैठकें की थीं. भारत के पूर्व कप्तान बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप में बने रहने के इच्छुक थे, लेकिन उन्हें बताया गया कि बोर्ड अध्यक्ष को दूसरा कार्यकाल देने की कोई मिसाल नहीं है.
बीसीसीआई सूत्र के हवाले से कहा गया था, ”सौरव को आईपीएल की अध्यक्षता की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने विनम्रता से इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. उनका तर्क था कि वह उसी संस्थान का नेतृत्व करने के बाद बीसीसीआई में उप-समिति के प्रमुख बनने को स्वीकार नहीं कर सकते. उन्होंने पद पर बने रहने में रुचि व्यक्त की थी.”