Hindi Student in UPSC Exam: हिंदी Medium वाले क्यों पास नहीं कर पा रहे IAS एग्जाम? जानिए वजह

क्या सिविल डिसऑबेडिएंस मूवमेंट का हिंदी में मतलब असहयोग आंदोलन होता है? या आपने किसी हिंदी की किताबों में जनसंख्या की जगह समष्टि या प्लास्टिक की जगह सुघट्य जैसे कठिन और अव्यावहारिक हिंदी शब्द लिखा देखा है? अगर ऐसा नहीं देखा है तो शायद आपने हाल के सालों में देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा माने जाने वाले सिविल सर्विस परीक्षा का पेपर नहीं देखा होगा। यहां हिंदी में ऐसे ही शब्द दिखने को मिलेंगे। पिछले कुछ सालों मे कई मौके पर बेहद लापरवाह अंदाज और हिंदी की उपेक्षा करते हुए गूगल ट्रांसलेट के माध्यम से हिंदी में क्वेश्चन पेपर बन दिए गए हैं।



इस उपेक्षा के साइड इफेक्ट भी इस परीक्षा के अंतिम परिणाम पर देखे गए। एक तरफ जहां हिंदी को लेकर पूरा जोर दिया जा रहा है उधर पिछले दस सालों में यूनियन सिविल सर्विस कमीशन की ओर से आयोजित सिविल सर्विस परीक्षा में हिंदी माध्यम से सफल होने वाले स्टूडेंट की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गयी है।

यूपीएससी 2014 की परीक्षा में 13वां और हिंदी माध्यम में प्रथम स्थान पाने वाले निशांत जैन इस ट्रेंड के बारे में कहते हैं- “टॉप रैंक में हिन्दी माध्यम की पहुंच कम होती जा रही है। जबकि हर साल संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों में हिन्दी और भारतीय भाषाओं के माध्यम से परीक्षा देने वालों की एक बड़ी संख्या होती है।

साल 2015 में मेरी और 2017 में गंगा सिंह राजपुरोहित और शैलेंद्र सिंह की अच्छी रैंकों के बाद कुछ साल अच्छी रैंक की कमी दिखी। हालांकि इसी वर्ष 2022 में हिन्दी माध्यम के दो अभ्यर्थियों, रवि कुमार सिहाग और सुनील धनवंता ने टॉप 20 में जगह बनाकर नया कीर्तिमान रचा है।”

सिविल सर्विस परीक्षा के आंकड़े भी हिंदी के कमजोर होते ट्रेंड की बात को साबित करती है। साल 2000 में यूपीएससी की सिविल सर्विस पास करने वाले टॉप 10 स्टूडेंट में छठवें और सातवें स्थान पर हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी रहे। अगले कुछ सालों तक यह ट्रेंड रहा। लेकिन 2017 में हिंदी माध्यम से टॉपर का पूरे परिणाम में 146 वां 2018 में 337,2019 में 317,2020 में 246 वां रैंक रहा। जो हिंदी के गुम होते आंकड़े बताते हैं।

हालांकि यह भी तथ्य है कि 1978 तक सिविल सर्विस परीक्षा में हिंदी मीडियम से परीक्षा देने का विकल्प नहीं था। तब मोरारजी देसाई की अगुवाई वाली सरकार ने परीक्षा में रिफॉर्म किया और सभी को समान रूप से मौका मिला। इसके लिए अंग्रेजी के अलावा कई भाषा में परीक्षा देने का विकल्प दिया गया। इसके कुछ सालों बाद से हिंदी ने अपनी पैठ बनानी शुरू की थी और अगले 30 साल में लगभग 6000 सिविल सर्विस अधिकारी हिंदी मीडियम से चुन कर आए, जिनमें कई टॉप दस में भी जगह नियमित रूप से पाते थे।

हालांकि पिछले दस साल से यूपीएससी इस बात की जानकारी नहीं देती कि सफल उम्मीदवारों ने किसी मीडियम में परीक्षा दी थी लेकिन जब वह ट्रेनिंग देने लाल बहादुर शास्त्री संस्थान जाते हैं वहां हर साल आंकड़े जारी होते हैं।

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