सुभाष चंद्र बोस को अपना आदर्श मानते थे ये एक्टर, 500 से ज्यादा कीं फिल्में, भोजपुरी सिनेमा के कहलाए पितामह

मुंबई. बॉलीवुड में ऐसे कई कलाकार हुए हैं, जिन्होंने ना सिर्फ बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई. जबकि जब वे रीजनल सिनेमा की ओर गए तो वहां भी झंडे गाड़ दिए. इनमें से कुछ कलाकार ऐसे हैं, जिन्होंने एक्टिंग का ख्वाब नहीं देखा था लेकिन किस्मत उन्हें फिल्मों में ले आई. फिल्मों में इन्होंने इतनी शिद्दत से काम किया है कि एक अलग ही पहचान कायम कर ली. ऐसे ही एक कलाकार हैं नजीर हुसैन (Nazir Hussain). कैरेक्टर आर्टिस्ट नजीर ने ना सिर्फ बॉलीवुड में बल्कि भोजपुरी सिनेमा में भी काफी नाम कमाया.



 

 

नजीर हुसैन का जन्म 15 मई 1922 को हुआ था. नजीर के पिता रेलवे में गार्ड की नौकरी किया करते थे और नजीर की शुरुआती परवरिश लखनऊ में हुई थी. शुरुआती दिनों में नाजीर ने रेलवे में फायरमैन के तौर पर काम शुरू कर दिया था. इसके बाद दूसरे विश्व युद्ध के समय उन्होंने ब्रिटिश आर्मी जॉइन कर ली थी. मलेशिया और सिंगापुर में पोस्टिंग के दौरान वे जेल में भी बंद हुए. इसके बाद भारत आने पर वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित रहे.

 

 

 

बिमल रॉय की हर फिल्म का हिस्सा
भारत आने के बाद जब काफी समय तक नजीर को काम नहीं मिला तो उन्होंने थिएटर जॉइन कर लिया. कोलकाता में थिएटर में काम करते हुए वे बिमल रॉय के सम्पर्क में आए और उन्होंने उन्हें अपना असिस्टेंट बना लिया. राइटिंग में भी नजीर मदद करने लगे. इसके बाद वे फिल्मों में एक्टिंग करने लगे और बिमल रॉय की हर फिल्म का हिस्सा बनने लगे. ‘दो बीघा जमीन’, ‘देवदास’, ‘नया दौर’, ‘मुनिमजी’ उनकी खास फिल्में रहीं. देवानंद की तो तकरीबन हर फिल्म में नजीर शामिल रहते थे.

 

 

 

1963 में रच दिया इतिहास
बॉलीवुड के बाद जब नजीर ने क्षेत्रीय सिनेमा की तरफ रुख किया तो उन्होंने नया इतिहास रच दिया. नजीर ने भोजपुरी सिनेमा को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद से भी बातचीत की थी. नजीर भोजपुरी सिनेमा की पहली फिल्म ‘मैया तोहे पियारी चढ़ाइबो’ लिखी थी और इसमें काम भी किया था. साल 1963 में रिलीज हुई इस फिल्म ने भोजपुरी सिनेमा के लिए नए रास्ते खोल दिए थे. ‘हमार संसार’ और ‘बलम परदेसिया’ जैसी फिल्मों के जरिए उन्होंने नई पहचान कायम की.

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