“धरोहर “के नाम से स्व कुंजबिहारी साहू स्मृति में यह पहल अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर आज के समय में जब आधुनिक तकनीकी सुविधाओं के कारण परंपरागत घरेलू और खेती-किसानी से जुड़े कई सामान और प्रक्रियाएं विलुप्त होती जा रही हैं। हमारे पूर्वजों का जीवन सरल था, लेकिन वे प्रकृति से गहराई से जुड़े रहते थे। उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले उपकरण, घरेलू सामान, और कृषि के तरीके न केवल उनकी जरूरतें पूरी करते थे, बल्कि यह भी दिखाते थे कि वे अपने पर्यावरण का सम्मान करते हुए उसे कैसे संरक्षित करते थे।
वर्तमान समय में, जब नई पीढ़ी इन चीजों से दूर होती जा रही है, यह आवश्यक हो जाता है कि हम इस सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करें, ताकि आने वाली पीढ़ी इस गौरवशाली इतिहास से जुड़ सके। इन परंपरागत वस्तुओं और साधनों को संग्रहित करना हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है, साथ ही यह भी दिखाता है कि हमारे पूर्वज किस प्रकार की सादगी और स्वावलंबन के साथ जीते थे।
“धरोहर “के अंतर्गत इन अमूल्य धरोहरों को एकत्र करना और कमरे में संरक्षित करना, अत्यंत सराहनीय है इससे न केवल उन वस्तुओं को संजोया जा सकेगा, बल्कि यह नई पीढ़ी के लिए एक ज्ञान का स्रोत भी बनेगा। यह संग्रहालय के रूप में काम करेगा, जहां बच्चे और युवा इन वस्तुओं को देखकर अपने पूर्वजों की जीवनशैली और कृषि-किसानी के परंपरागत तरीकों को समझ सकेंगे।
खेती से संबंधित फसलों के अच्छी उत्पादन ,सुरक्षा। विभिन्न प्रकार के साग सब्ज़ी,फ़ुल पौधे भी संरक्षित किया गया है जो तारीफ़े काबिल है ।
आज सपरिवार किसान स्कूल को देखा, वहाँ के वस्तुओं के उपयोग और महत्व की जानकारी भी दी गई और बताया गया कि यह इन वस्तुओं का जीवन में क्या महत्व था और वे आज के समय में भी कितनी उपयोगी हो सकती हैं
यह पहल आने वाली पीढ़ियों को न केवल उनके सांस्कृतिक धरोहर से परिचित करा रही है, बल्कि यह भी दिखाएगी कि आधुनिकता के बीच पारंपरिक ज्ञान और साधन किस प्रकार उपयोगी हो सकते हैं।
धन्यवाद 🙏