कभी सब्‍जीवाले ने फ्री में दी थी सब्जियां, 14 साल बाद संतोष ने डीएसपी बनकर सलमान को खोजा..

संघर्ष के दिनों में साथ निभाने वालों के लिए वादा करता हूं कि हम वो नहीं जो मुश्किलों में आपका साथ छोड़ दें, हम वो हैं जरूरत पड़ी तो आपकी सांसों से अपनी सांसें जोड़ दें.
भोपाल में मध्य प्रदेश पुलिस की एक गाड़ी सब्जी  बेचने वाले सलमान खान के पास आकर रुकती है, जो यह देखकर घबरा जाते हैं कि पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) उसका नाम पुकार रहे हैं.



 

 

डीएसपी संतोष पटेल ने आखिरकार उस आदमी को ढूंढ़ निकाला जिसकी उन्हें तलाश थी. 14 साल पहले जब वे आखिरी बार मिले थे, तब से सलमान खान का वजन कम हो गया था, लेकिन पटेल ने उसके होठों पर एक निशान के आधार पर उसकी पहचान की.

 

 

 

खान ने पटेल को सलाम किया, जिन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा, “मेरे को पहचानते हो (क्या आपको मैं याद हूं?).” सलमान ने जवाब दिया, “बिलकुल अच्छी तरह से, सर. आप सब्जी लेने आते थे.” दोनों लोगों ने एक-दूसरे को गले लगाया और बहुत समय पहले बने उस बंधन को ताजा किया, जब खान ने पटेल की मदद की थी, जो उस समय भोपाल में एक संघर्षरत इंजीनियरिंग छात्र थे.

 

 

ग्वालियर के बेहट डिवीजन में अब पोस्टेड पटेल ने रिपोर्टर से कहा , “पन्ना में 120 लोगों के अपने परिवार में मैं पहला ग्रेजुएट हूं. मैं अपने परिवार का पहला पुलिस अधिकारी भी हूं. मैं तमाम मुश्किलों के बावजूद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने भोपाल गया और फिर एमपी पब्लिक सर्विस कमीशन की तैयारी की. ऐसे भी दिन थे जब मेरे पास खाने के लिए पैसे नहीं होते थे. खान इतने दयालु थे कि उन्होंने मुझे टमाटर और बैंगन खिलाया. उनका दिल सोने जैसा है.”

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भोपाल के अप्सरा टॉकीज इलाके में ग्राहकों की सेवा में व्यस्त खान ने रिपोर्टर को बताया, “जब पुलिस की गाड़ी आई तो मैं डर गया, लेकिन जब मैंने पटेल को देखा, तो मुझे एक बहुत पुराना खोया हुआ दोस्त मिल गया. मैंने हज़ारों लोगों को सब्ज़ियां बेचीं – कोई भी मेरा चेहरा याद नहीं रखता, वे आगे बढ़ गए, लेकिन पटेल आए और मुझसे मिले. मैंने उन्हें सोशल मीडिया पर फॉलो किया था और मुझे उन पर गर्व था कि वे एक अधिकारी बन गए हैं. मुझे नहीं पता था कि वे मुझसे मिलेंगे. उन्होंने मुझे मिठाई का एक डिब्बा और कुछ नकद दिए. उन्हें अपनी जड़ें याद हैं, मुझे याद है. यह एक सपना सच होने जैसा था.”

 

 

दोनों लोग, जिनकी उम्र करीब 33 साल की है, पहली बार 2009-10 में मिले थे जब पटेल पन्ना के देवगांव से बाहर चले गए थे. उनके पिता एक शिल्पकार थे जबकि उनके परिवार के ज़्यादातर लोग स्थानीय डाकिये के तौर पर काम करते थे. पटेल की बड़ी बहन की शादी कम उम्र में ही हो गई थी और अब वह अपने भाई से मोटिवेट होकर बी.कॉम करना चाहती है.

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उन्होंने याद करते हुए कहा, “मैं केरोसिन लैंप के नीचे पढ़ाई करता था और कई बार मेरे पास खाने के लिए पैसे नहीं होते थे. मैंने खर्च चलाने के लिए छोटे-मोटे काम किए. तभी मेरी खान से दोस्ती हुई.”

 

 

खान, जिनके पांच भाई और तीन बहनें हैं, भोपाल के एक गरीब परिवार से आते हैं. उनके भाई सब्ज़ियां बेचते हैं और ऑटो चलाते हैं जबकि उनकी बहनें शादीशुदा हैं. खान और पटेल हर रोज एक-दूसरे से बात करते थे.
खान ने कहा, “वह बिल्कुल मेरे जैसा था – एक गरीब आदमी. हम एक-दूसरे को समझते थे. मैं उसे कभी-कभी सब्ज़ियां दे देता था; यह कोई बड़ी बात नहीं है. मैं एक गरीब लड़के को भूखा रखकर पैसे क्यों कमाऊं? ऐसे कई स्टूडेंट थे जिन्हें मैंने फ्री सब्ज़ियां दीं. पटेल कभी-कभी मेरे काम में मेरी मदद भी करता था.”

 

 

समय के साथ पटेल ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली. वे अपने गांव लौट आए और पन्ना में फॉरेस्ट गार्ड की नौकरी करने लगे. उन्होंने पुलिस में भर्ती होने के लिए पढ़ाई जारी रखी और 2017 में एमपीपीएससी में सफल हुए.

 

 

ग्वालियर आने से पहले उन्होंने बैतूल और निवाड़ी में डीएसपी के पद पर काम किया. उन्होंने सोशल मीडिया पर भी काफी संख्या में फॉलोअर्स जुटाए हैं – इंस्टाग्राम पर करीब 2.4 मिलियन फॉलोअर्स – एमपी के ग्रामीण जिलों में पुलिसिंग के अपने एक्सपीरिएंस को शेयर करके, किसानों के साथ कविताएं शेयर करके, हिंदी पट्टी में गरीबों के संघर्ष के बारे में बात करके और गरीब परिवारों के छात्रों से मिलकर, उन्हें स्कूल यूनिफॉर्म और बैग गिफ्ट करके, लेकिन खान की याद उनके दिमाग में बनी रही. पटेल ने कहा, “मैंने इन सभी सालों में उनसे मिलने की कोशिश की, लेकिन कभी भोपाल में पोस्ट नहीं किया गया. चार दिन के ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान, मैंने आखिरकार उन्हें उसी जगह देखा, जहां वे 14 साल पहले थे.”

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