खरौद. महामाया अध्यात्म परिषद का रविवारीय मासिक सत्संग का आयोजन किया गया। सत्संग महिला मण्डली द्वारा माता सेवा के भजन से प्रारम्भ किया गया।आज के सत्संग कार्यक्रम में हेमलाल यादव ने कहा कि काशी में जैसे विश्वेश्वर महादेव के रूप में साक्षात शिवजी विराजमान है. वैसे ही लक्ष्मणेश्वर धाम खरौद में लक्ष्मणेश्वर शिवलिंग के रूप में भगवान शिव विराजमान है, इसीलिए खरौद को छत्तीसगढ़ का काशी कहा जाता है।
सन्तों व,पुराणों के मतानुसार काशी यात्रा में दो यात्रा पहला मणिकर्णिका घाट का स्नान फिर दूसरा विश्वेश्वर का दर्शन करने को आवश्यक माना गया है वैसे ही यहां भी श्रद्धालुओं को चाहिए पहले महानदी के जलघाट में स्नान कर उसके बाद लक्ष्मणेश्वर महादेव का दर्शन करे।मान्यता है कि श्रीरामचन्द्रजी के बनवास काल मे लंका विजय के बाद अयोध्या वापस लौटने के बाद लक्ष्मणजी को मेघनाथ ब्राम्हण के बध करने के कारण ब्रम्हहत्या का पाप लगा था ।इस पाप से मुक्ति के लिए मुनियों के निर्देशानुसार श्रीलक्ष्मण जी एक लाख शिवलिंगों में जलाभिषेक कर ब्रम्हहत्या के पाप से मुक्त के लिए यहां आकर शिवजी का ॐ नमः शिवाय मन्त्र का जप कर शिवजी का अराधना किया ।अराधना से प्रसन्न हो शिवजी लक्ष्मणजी को ब्रम्हहत्या के पाप से मुक्त होने का बरदान देकर यहीं सदा के लिए लक्षलिंग लक्ष्मणेश्वर के रुप मे सदा के लिए विराजमान हो गया।
आशुतोष भगवान शिव को पूजा में सबसे अधिक प्रिय जलधारा है।इसलिए भगवान शिव के पूजन में रुद्राभिषेक की परम्परा है। वेसे तो शिव जी कही के भी जल से अभिषेक करने से प्रसन्न हो जाते हैं परन्तु रद्राभिषेक में कुएं के जल से सरोवर का सरोवर के जल से नदी का और नदी के जल से तीर्थ या गङ्गा का जल श्रेष्ठ होता है। महानदी का जल भी गङ्गा जल जैसे ही पवित्र है।।परन्तु पवित्रता के अनुसार अलग अलग स्थानों का जल अलग अलग महत्व का होता है।तभी तो रामेश्वर में गगोत्रीजल और काशीविश्वनाथ में मणिकर्णिका घाट के जल चढ़ाने का विधान है।वैसे ही लक्ष्मणेश्वर में जल घाट के जल चढ़ाने का विधान है।कहते हैं शिवाराधना काल मे लक्ष्मणजी ने महानदी के जलघाट में स्नान कर जलघाट के जल से ही लक्ष्मणेश्वर महादेव जी का अभिषेक कर पाप से मुक्त हुए थे।
मान्यता है कि एक लक्ष्मणेश्वर शिवलिंग का पूजन अभिषेक करने से एक लाख शिवलिंग के पूजा करने का और ब्रम्हहत्या जैसे पाप से मुक्त होने का फल प्राप्त होता है।श्री लक्षलिंग समेत शोभित जयति जय लक्ष्मणेश्वरं।कार्यक्रम को परिषद के अध्यक्ष शिवरात्री यादव ने भी सम्बोधित किया।उन्होंने कहा कि श्रीराम चन्द्रजी केवल रावण का बध करने के लिए अवतार नही लिये थे।बल्कि अपने आदर्श चरित्र एवं संस्कार से मानव समाज को शिक्षा भी देना था।प्रभुश्रीरंचन्द्रजी ने भी शक्ति की उपासना किये थे ।शक्ति की उपासना अर्थात नारी की सम्मान करना। कार्य क्रम को सफल बनाने में धनसाय यादव रविशंकर यादव कपील आदित्य सरहाराम बैगा सुमित्रा आदित्य रमा नर्मदाबाई रामकली छठबाई श्यामा बाई जानकी,सीता,गौरी यादव चन्द्रप्रभा यादव तिरवेनी शांतिदेवी श्रीवास आदि का भी सराहनीय सहयोग रहा।