कोरबा. दीपावली आते ही सभी उत्साहित होकर अपने घर की सफाई शुरू करते हैं और घर से कचरा निकाल फेकते हैं. यह सब मां लक्ष्मी के आगमन एवं घर को पवित्र करने के लिए करते हैं, लेकिन पहाड़ी कोरवा अपने घर को पवित्र बनाने दीपावली पर पुराने घर का त्याग कर नए घर में प्रवेश करते हैं.
हम बात कर रहे हैं, कोरबा जिले में निवास करने वाले पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले और राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा और आदिवासी बिरहोर जनजाति की, वे अपनी पूर्वज की रीति-रिवाजों को आज भी अपनाए हुए हैं. उनके घर में यदि किसी का देहांत हो जाता है तो वह दीपावली पर उस घर को छोड़ देते हैं और नए घर में पूजा कर प्रवेश करते हैं. वह ऐसा इसलिए करते हैं कि परिवार में निधन होने पर वे घर को अशुद्ध मानते हैं और नए घर का निर्माण कर वहां प्रवेश करते हैं.
दीपावली पर ही नए घर पर प्रवेश करने को वह शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. वे इस दिन को इसलिए भी चुनते हैं, क्योंकि यह प्रथा उनके पूर्वज से चले आ रहे रीति-रिवाज के जुड़ा है.
पहाड़ी कोरवा पहाड़ों पर ही अपना निवास बनाते हैं और परिवार में देहांत होने के बाद वह उस जगह को छोड़ देते हैं. पहाड़ी कोरवा पक्के मकान का निर्माण नहीं करते और मिट्टी, छप्पर के घर में रहते हैं. पहाड़ी कोरवा की संख्या बेहद कम है, लेकिन आज भी वे इस परंपरा को निभा रहे हैं.