ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य खोलेगा विशालकाय टेलीस्कोप जेम्स वेब, जानिए… कैसे करेगा काम

नई दिल्ली. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप आखिरकार शनिवार शाम 5.50 बजे (भारतीय समयानुसार) फ्रेंच गयाना ने सफलतापूर्वक लांच कर दिया गया। दो दशक से अधिक समय से बन रहे और लांचिंग की राह देख रहे इस विश्व के सबसे बड़े टेलीस्कोप से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों से पर्दा उठ सकेगा। यह हबल टेलीस्कोप का स्थान लेगा जिसने तीस साल से अधिक तक विज्ञानियों को अंतरिक्ष की तस्वीरें और अंदरूनी जानकारी उपलब्ध कराईं। अब जेम्स वेब ब्रह्मांड की शुरुआत से जुड़े उन रहस्यों की खोज में निकला है जो अभी तक मानव को पता ही नहीं हैं। आइए समझें कि आखिर यह जेम्स वेब टेलीस्कोप क्या है और कैसे काम करेगा…



हबल टेलीस्कोप के जरिये ब्रह्मांड के बारे में काफी जानकारी हासिल करने के बावजूद विज्ञानी इसकी शुरुआत और क्रमिक विकास व इसमें पृथ्वी के स्थान के बारे में बहुत ठोस जानकारी हासिल नहीं कर सके। अब जेम्स वेब का विशालकाय लेंस पहली आकाशगंगा और सितारों से जुड़े इतिहास को सीधे देख सकेगा और 13.5 अरब साल पहले ब्रह्मांड की उत्पत्ति से लेकर विभिन्न चरणों में इसके विकास की परतें खंगालेगा।

यूं पड़ा जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप नाम

इस टेलीस्कोप का नामकरण 2002 में नासा के प्रमुख रहे जेम्स वेब के नाम पर रखा गया। 1961 में अमेरिकी राष्ट्रपति जान एफ केनेडी के आग्रह पर यह जिम्मेदारी संभालने वाले वेब को नासा के अतिमहत्वपूर्ण अपोलो अभियान में उल्लेखनीय भूमिका के लिए जाना जाता है। इसी अपोलो अभियान के तहत नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्डि्रन के रूप में मानव पहली बार चंद्रमा पर पहुंचा था। नासा के एक समलैंगिक कर्मी की गोली मारकर हत्या के मामले में वेब को लेकर विवाद रहा, लेकिन नासा ने टेलीस्कोप का नाम बदलने से इन्कार कर दिया था। वेब का निधन 1992 में हुआ।

20 साल से अधिक का इंतजार

जेम्स वेब टेलीस्कोप को बनाने की योजना और लांचिंग के बीच 20 साल से अधिक का समय लगा। लांचिंग से करीब छह माह बाद ही यह अंतरिक्ष से डाटा और तस्वीरें भेजने का काम शुरू कर सकेगा। लांचिंग के बाद कक्षा में पहुंचने के बीच कई चरणों में यह काम करने के लिए तैयार होगा। कक्षा में पहुंचने के बाद यह ठंडा होगा जिसके बाद इसके संचालन से जुड़ी टीम सारे उपकरण खोलेगी और उन्हें एक दूसरे के साथ एलाइन करेगी। कई बार इसकी लांचिंग की योजना सफल नहीं हुई।

 

हजारों विज्ञानियों का श्रम

विश्व के इस सबसे महंगे टेलीस्कोप को बनाने में 10 बिलियन डालर (करीब 75 हजार करोड़ रुपये) से अधिक की लागत आई है। नासा के अनुसार, इसमें 344 छोटे पार्ट हैं और इनमें से अगर एक ने भी सही से काम नहीं किया तो अंतरिक्ष में जाकर भी इस टेलीस्कोप का काम करना मुश्किल होगा। इसे नासा के साथ यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी ने मिलकर बनाया है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के 29 राज्यों के अलावा 14 देशों के 300 से अधिक विश्वविद्यालयों और संस्थानों के विज्ञानियों ने इसे बनाने में सहयोग किया है। इसे एरियन5 राकेट की सहायता से लांच किया गया है।

 

अंतरिक्ष में खुलेगा पूरा टेलीस्कोप
यह पहला टेलीस्कोप जिसे पूरी तरह से फोल्डेबल (मुड़ने लायक) बनाया गया है। लांचिंग के बाद अंतरिक्ष में स्थापित होने पर यह खुद को खोलेगा। इसके लेंस का व्यास 21 फीट से अधिक है। इसे ऐसे समझें कि हबल के लेंस का व्यास करीब आठ फीट था। 18 षटकोणीय लेंस से मिलकर बना मधुमक्खी के छत्ते सरीखा यह लेंस सुनहरे रंग का है और इन्फ्रारेड तरंगों के बीच भी झांक सकेगा।

 

सूर्य और पृथ्वी के बीच कक्षा में रहेगा

लांचिंग के करीब एक माह बाद जेम्स वेब लैगरेंज प्वाइंट (एलटू) नाम के स्थान पर पहुंचेगा जहां सूर्य और पृथ्वी के बीच गुरुत्वाकर्षण का संतुलन होगा। यहीं पर यह सूर्य की परिक्रमा करेगा। इसकी पृथ्वी से दूरी करीब 15 लाख किलोमीटर होगी। इसी स्थान पर यह खुद को पूरी तरह से खोलेगा। यह बहुत जटिल प्रक्रिया होगी और विज्ञानियों को इसके सफल होने की प्रतीक्षा है। इसे सूर्य से सुरक्षा प्रदान करने वाली सनशील्ड एक टेनिस कोर्ट के बराबर होगी। विज्ञानियों का मानना है कि सनशील्ड खुलने की प्रक्रिया सर्वाधिक जटिल है। जेम्स वेब अभियान से जुड़ी विज्ञानी एमा कर्टिस लेक का कहना है कि यह टेलीस्कोप के डाटा के जरिये हम मानव जीवन के लिए आवश्यक नाइट्रोजन, आक्सीजन और कार्बन से जुड़े तथ्यों की ब्रह्मांड में खोज कर सकेंगे। जेम्स वेब टेलीस्कोप 125 डिग्री सेल्सियस से माइनस 233 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर काम कर सकता है, इस कारण यह इन्फ्रारेड से जुड़ी जानकारी देने में अहम भूमिका निभाएगा।
यह होंगे मुख्य उपकरण

इसमें मुख्यत: चार उपकरण होंगे जो शोध-अनुंधान में सहायता करेंगे। नियर इन्फ्रारेड कैमरा, नियर इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोग्राफ, मिड इन्फ्रारेड इंस्ट्रूमेंट और फाइन गाइडिंग सेंसर के साथ नियर इन्फ्रारेड इमेजर एंड स्लिटलेस स्पेक्ट्रोग्राफ।

यह देखी जा सकने वाली, नियर इन्फ्रारेड और मिड इन्फ्रारेड (0.6-28.5 माइक्रोमीटर) वाली तरंग दै‌र्ध्य (वेव लेंथ) का अध्ययन अपने उपकरणों व लेंस के जरिये कर सकेगा।

मिशन की समयावधि पांच से दस साल बताई गई है।

नंबर गेम

4 करोड़ घंटे लगे हैं इस टेलीस्कोप को बनाने में

2017 में लंबे कामकाजी घंटों के बाद जेम्स वेब के जरूरी इंस्ट्रूमेंट्स को एक साथ जोड़ा गया.

पहली आकाशगंगा से लेकर अब तक की पड़ताल.

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