हाल ही में देश की सबसे बड़ी न्यायपालिका यानी सर्वोच्च न्यायालय में नौ नए जजों ने पदभार संभाला। एकसाथ शपथ लेने वाले जजो में तीन महिला न्यायाधीश शामिल हैं। इसके बाद ये लगभग तय माना जा रहा है कि भारत को 2027 में पहली महिला मुख्य न्यायाधीश मिल सकती है। आज तक कभी भी कोई महिला सीजेआई के पद पर नियुक्त नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट में तो ऐसा पहली बार होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि हाई कोर्ट की पहली महिला जज कौन हैं? वर्तमान में तो देश के पास कई महिला जज हैं जो उच्च न्यायालयों में कार्यरत हैं, लेकिन जिस महिला ने पहली बार देश के किसी उच्च न्यायालय के जज के तौर पर अपनी जगह बनाई और महिलाओं के लिए इस क्षेत्र में राह बनाई वह हैं अन्ना चांडी। चलिए जानते हैं देश की पहली महिला जज अन्ना चांडी के बारे में।
कौन हैं अन्ना चांडी?
अन्ना चांडी केरल की रहने वाली थीं। उनका जन्म चार मई 1905 को केरल (उस समय का त्रावणकोर) के त्रिवेंद्रम में हुआ था। उनका ताल्लुक एक ईसाई परिवार से था।
अन्ना चांडी की शिक्षा और करियर
1926 में अन्ना चांडी ने कानून में ग्रेजुएशन की डिग्री ली। बड़ी बात ये है कि उस दौर में अन्ना लॉ की डिग्री लेने वालीं केरल की पहली महिला थीं। अन्ना ने अपने करियर की शुरुआत बतौर बैरिस्टर की और अदालत में प्रैक्टिस शुरू की। लगभग 10 साल बाद 1937 में केरल के दीवान सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने चांडी को मुंसिफ के तौर पर नियुक्त किया।
1959 में देश की पहली महिला जज की नियुक्ति
उनका पद बढ़ता गया और उपलब्धियां भी। 1948 में अन्ना चांडी का जिला जज के तौर पर प्रमोशन हो गया। उस समय तक भारत के किसी भी हाई कोर्ट में कोई महिला जज नहीं थी। इसके बाद 1959 में अन्ना चांडी केरल हाईकोर्ट की पहली महिला जज बन गईं।
केरल हाईकोर्ट के न्यायाधीश के पद पर जस्टिस अन्ना ने साल 1967 तक सेवाएं दीं, जिसके बाद उनका रिटायरमेंट हो गया। हालांकि अन्ना रिटायरमेंट के बाद भी न्याय के लिये कर करती रहीं और बाद में लॉ कमीशन ऑफ इंडिया में नियुक्त हो गईं।
अन्ना चांडी महिलाओं के अधिकारों के लिए हमेशा अपनी आवाज बुलंद करती रहीं। इस काम के लिए उन्होंने ‘श्रीमती’ नाम से एक पत्रिका भी निकाली थी, जिसमें महिलाओं से जुड़े मुद्दों को जोर-शोर से उठाया जाता था। इसके अलावा ‘आत्मकथा’ नाम से उनकी ऑटोबायोग्राफी भी है। केरल में साल 1996 में 91 साल की उम्र में अन्ना चांडी का निधन हो गया।