सनातन धर्म की मान्यताओं के मुताबिक साल में पितृ पक्ष के 15 दिन ऐसे आते हैं, जब पूर्वजों की आत्माएं अपने परिवार से मिलने और आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर विचरण करती हैं. इन 15 दिनों पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. इस अवधि में किसी भी तरह के शुभ कार्य किए जाने की मनाही होती है. लेकिन अगर पितृ पक्ष के दौरान घर में संतान का जन्म हो तो उसे क्या माना जाए.
क्या श्राद्ध में जन्मी संतान दुर्भाग्य का प्रतीक होती है या सौभाग्य की. उसके जन्म का परिवार पर क्या असर पड़ता है. आइए आज आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं.
दिवंगत पूर्वज फिर से लेते हैं जन्म
मान्यता है कि पितृ पक्ष में जन्म लेने वाले बच्चे कुटुंब के ही दिवंगत पूर्वज होते हैं, जो किसी खास प्रयोजन से फिर से परिवार में जन्म लेते हैं. कहा जाता है कि श्राद्ध के दौरान पैदा हुए बच्चे बहुत रचनात्मक होते हैं और वे आगे चलकर परिवार का नाम रोशन करते हैं. ऐसे बच्चे बुद्धि और कौशल के मामले में बहुत मेधावी माने जाते हैं.
पितरों की बनी रहती है खास कृपा
शास्त्रों के मुताबिक पितृ पक्ष में जन्म लेने वाले बच्चे सौभाग्यशाली माने जाते हैं. मान्यता है कि इन 15 दिनों की अवधि में जन्म लेने वाले बच्चों पर पितरों की विशेष कृपा होती है. ऐसे बच्चे जिंदगी में आगे चलकर हर परीक्षा में कामयाब होते हैं. श्राद्ध पक्ष में उनका जन्म लेना काफी शुभ माना जाता है.
दूसरों की तुलना में ज्यादा समझदार
कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान जन्म लेने वाले बच्चे अपनी उम्र के दूसरे बच्चों की तुलना में ज्यादा समझदार होते हैं. वे बहुत जल्दी हर बात सीखते हैं. उन्हें कम उम्र में ही अपनी जिम्मेदारी का बोध हो जाता है. उनके पास ज्ञान का अथाह भंडार होता है. वे परोपकार और दया की प्रतिमूर्ति होते हैं.
अपने परिवार से काफी लगाव
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक पितृपक्ष में जन्म लेने वाले बच्चों को अपने परिवार से बहुत लगाव होता है. वे परिवार के मान-सम्मान को समझते हैं और अपने व्यवहार से हर जगह परिवार का मान बढ़ाते हैं. अपने व्यवहार और ज्ञान से वे समाज में यश प्राप्त करते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Khabar CG News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)