नयी दिल्ली। विदेशों में कमजोरी के रुख के बीच स्थानीय बाजार में बृहस्पतिवार को खाद्य तेल-तिलहन कीमतों में एक बार फिर गिरावट जारी रही। इस गिरावट की वजह से स्थानीय तेल-तिलहन मिलों का संकट और बढ़ गया है।
सूत्रों ने कहा कि मंहगा होने के कारण अब देश में कच्चे पामतेल (सीपीओ) का आयात कम हो रहा है। इस तेल को प्रसंस्करण करने की अलग से लागत आती है। इस तेल की खपत कमजोर आय वर्ग, रेहड़ी पटरी वाली दुकानों, खोमचे वालों और छोटे रेस्तरांओं द्वारा अधिक किया जाता है। ऐसे उपभोक्ता सीपीओ की जगह देश में पामोलीन का आयात कर रहे हैं। इसी वजह से सीपीओ के दाम पूर्वस्तर पर बने रहे, जबकि 13.75 प्रतिशत का आयात शुल्क लगने की वजह से पामोलीन भी महंगा है। देश में सबसे अधिक आयात पामोलीन तेल का होता है और महंगे में मांग प्रभावित होने से पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट देखी गई। हालांकि, मौजूदा समय में सूरजमुखी और सोयाबीन रिफाइंड से पामोलीन तेल का दाम पांच रुपये लीटर ऊंचा बैठता है।
सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित खाद्य तेलों के भाव कम होने के बीच सरसों, मूंगफली, सोयाबीन और बिनौला की लागत कहीं अधिक बैठती है जिस कारण से इन सभी तेल- तिलहन कीमतों में गिरावट देखी गई। सूत्रों ने कहा कि मौजूदा समय देश के तेल-तिलहन उद्योग के लिए सबसे बुरा दौर है और देश के तेल उद्योग का संकट गहराया है और इसका दीर्घकालिक असर हो सकता है।
उन्होंने कहा कि अभी आयातित तेल थोक में लगभग 1,000 डॉलर प्रति टन में मिल रहा है। इससे घरेलू तेल-तिलहन उद्योग तो नष्ट हो जायेगा और आगे जाकर आयात पर पूरी तरह निर्भरता हो सकती है। ऐसे में देश, विदेशी तेल कंपनियों की मनमानी का शिकार बन सकता है और यही विदेशी कंपनियां देश को खाद्य तेलों के लिए आयात पर पूरी तरह निर्भर बनाने के बाद मनमाने ढंग से खाद्य तेलों के दाम दोगुना-तिगुना कर दें तो हम कुछ नहीं कर पायेंगे। शुल्कमुक्त आयात की छूट के कारण 31 मार्च तक जो भारी मात्रा में आयात खेपों का लदान हुआ है वह आने वाले काफी समय तक हमारे बाजार को प्रभावित करेगी।
सूत्रों ने कहा कि देशी तिलहन बाजार में खप नहीं रहे हैं और देश के कुछ प्रमुख तेल संगठन इन परिस्थितियों के बारे में खामोश रहते हैं। इन्हें सरकार को तेल तिलहन उद्योग, किसान और उपभोक्ताओं की स्थिति के बारे में वास्तविक सूचना देनी चाहिये। इनका मौजूदा रवैया शोचनीय है। थोक में सस्ता होने के बाद भी प्रीमियम और अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) जरूरत से अधिक निर्धारित किये जाने के कारण यही खाद्य तेल उपभोक्ताओं को महंगे में खरीदना पड़ता है। तिलहन उत्पादन बढ़ाने के बाद भी उपज ही न खपे तो किसान भी अपना रुख बदल सकते हैं और आज देश में जो हाल सूरजमुखी खेती का हुआ है वह अन्य तिलहन फसलों के साथ न हो जाये, यह खतरा मौजूद है।
मलेशिया एक्सचेंज में 0.75 प्रतिशत की गिरावट है जबकि शिकॉगो एक्सचेंज में कल रात दो प्रतिशत की गिरावट थी और फिलहाल यहां एक प्रतिशत की गिरावट है।
बृहस्पतिवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन – 5,050-5,150 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली – 6,815-6,875 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 16,720 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली रिफाइंड तेल 2,545-2,810 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 9,800 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 1,580-1,650 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 1,580-1,700 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,780 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 10,500 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 9,150 रुपये प्रति क्विंटल।
सीपीओ एक्स-कांडला- 8,800 रुपये प्रति क्विंटल।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,400 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 10,150 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन एक्स- कांडला- 9,30 0 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
सोयाबीन दाना – 5,355-5,405 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन लूज- 5,105-5,205 रुपये प्रति क्विंटल।
मक्का खल (सरिस्का)- 4,010 रुपये प्रति क्विंटल।