Janjgir : शीघ्र प्रसन्न होकर मनवांछित फल देने वाले हैं भगवान आशुतोष : आचार्य पांडेय, शिव महापुराण के चौथे दिन सती जन्म और विवाह की कथा का किया वर्णन

जांजगीर-चांपा. भगवान शंकर आशुतोष हैं, शीघ्र प्रसन्न होने वाले हैं, वे अन्य देवताओं की तुलना में शीघ्रता से प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित देने वाले,कामनाओं की पूर्ति करने वाले हैं।



ये बातें व्यास आचार्य मनोज पांडेय ने कही। समीपस्थ ग्राम बनारी में तिवारी परिवार द्वारा आयोजित
श्री शिव महापुराण की कथा के चौथे दिन दुर्ग जेवरा सिरसा से आए हुए ब्यास आचार्य पाण्डेय ने कुबेर कामदेव संध्या गुणनिधि, सती जी के जन्म और शिव जी के साथ विवाह की कथा सुनाई ।
उन्होंने बताया कि गुणनिधि नाम का ब्राह्मण बालक जो जुआ खेलने लगा था, झूठ बोलने लगा था, जब उसके पिता ने उसे घर से त्याग दिया, परिवार ने त्याग दिया, तब भूखा प्यासा वह बालक भगवान शंकर जी के मंदिर में रात्रि में प्रसाद मिल जाने की अपेक्षा में गया था ।

अंधेरा देखा मंदिर में तो उसने अपना वस्त्र जला करके मंदिर में प्रकाश किया और प्रसाद चुराया। आसपास के लोगों ने चोर समझ कर उसकी खूब पिटाई की और उसकी मृत्यु हो गई ।लेकिन भगवान शंकर जी ने उसके इस अपराध को क्षमा कर दिया। इसने अपना वस्त्र जलाकर मेरे मंदिर में दीपदान किया है, इसे विशेष फल मिलना चाहिए और उसे कलिंग देश का राजा बना दिया। राजा बनने के बाद उसने अपने राज्य के सभी शिव मंदिरों में दीपदान की नियमित व्यवस्था की और शिव पूजन किया। उसके पुण्य प्रभाव से वही कुबेर बने। यह भगवान शिव जी की विशेष कृपा है, उदारता है, कि प्रसाद चोरी करने आया हुआ व्यक्ति भी आज कुबेर बना हुआ है। आचार्य श्री ने कहा कि भगवान शिव जी के मंदिर में दीप जलाने से झाड़ू लगाने से और भगवान जी को चंदन लगाने से व्यक्ति का राज योग बन जाता है, इसलिए सभी को अपने घरों के आसपास जो भी शिव मंदिर है, वहां दीप जलाना चाहिए। भगवान को चंदन लगाना चाहिए। मंदिर में यथासंभव सेवा कार्य करना चाहिए।इससे बड़ी से बड़ी बाधाएं मिट जाती हैं और व्यक्ति राजयोग को प्राप्त होता है।

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इसी प्रकार कामदेव की कथा का वर्णन करते हुए कथा वक्ता ने बताया की कामदेव को मन्मथ,मदन कामदेव , अनंग आदि अनेक नाम से जाना जाता है। कामदेव का प्रभाव सभी व्यक्तियों पर सभी अवस्थाओं पर पड़ रहा था, लोग अपनी मर्यादा खो रहे थे, तब भगवान शंकर जी ने विशेष कृपा करके काम को केवल हमारे शरीर के चार अवस्थाओं में से केवल एक अवस्था युवावस्था में ही प्रभावित रहने का आदेश दिया। बाल्यावस्था कुमार अवस्था और वृद्धावस्था में काम का प्रभाव न पड़े यह विशेष व्यवस्था फिर भगवान शिव जी की ही कृपा है। इसी प्रकार दक्ष की तपस्या सती जी का जन्म और सती जी के विवाह की कथा का आचार्य पांडेय ने सविस्तर वर्णन किया। उन्होंने बताया कि माता पार्वती जी ने हरतालिका व्रत करके, तपस्या करके, शिवजी को पति रूप में प्राप्त किया था।

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इस प्रकार माता सती ने नंदा व्रत के द्वारा शिव जी को प्राप्त किया। हरतालका व्रत और नंदा व्रत कुंवारी कन्याओं का विशेष व्रत है, जिससे श्रेष्ठ पति की प्राप्ति होती है, परंतु वर्तमान में विवाहित महिलाएं इस व्रत को पति की मंगल कामना के लिए रखती हैं। कथा श्रवण करने मुख्य यजमान श्रीमती आशा कृष्णकांत तिवारी, जगदीश तिवारी, विजय तिवारी, सत्यप्रकाश तिवारी, राकेश तिवारी, रमाकांत तिवारी, राजेश तिवारी, कमलकांत तिवारी, माधव प्रसाद पाण्डेय, जीवराखन तिवारी, राकेश पाण्डेय, लक्ष्मीकांत पाण्डेय, मनमोहन दुबे, गोरेलाल मिश्रा, रामेश्वर साव, बोधराम धीवर आदि उपस्थित थे।

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