IAS Story : सेना में कर्नल के पद पर रहे, फिर बने IAS अफसर, 29 साल लड़ी सम्मान की लड़ाई, पहनते हैं सिर्फ खादी. पढ़िए कहानी…

IAS Story : आज आपकी मुलाकात एक ऐसी शख्सियत से कराने जा रहे हैं जो सैन्य अधिकारी रहा. फिर आईएएस अफसर बना. अब बद्रीनाथ में एक सन्यासी का जीवन जी रहा है. जीवन के इन तीन भागों के बीच यह शख्स एक लेखक, समाजसेवी और मोटिवेटर भी है. हम बात कर रहे हैं डॉ. कमल टावरी की. वह इतनी सारी उपलब्धियां समेटे होने के बावजूद इतनी सादगी भरा जीवन जीते हैं कि एक बार तो कोई यकीन ही नहीं कर पाएगा कि वह साल 2006 तक एक अफसर हुआ करते थे. राज्य और केंद्र सरकार कई महत्वपूर्ण विभागों में सचिव भी रह चुके हैं.



 

 

 

डॉ. कमल टावरी आईएएस पद से रिटायरमेंट के बाद युवाओं को स्वराजगार के प्रति प्रेरित करने के साथ तनामुक्त जीवन जीने का हुनर सिखाते हैं. साल 2022 में उन्होंने बद्रीनाथ में सन्यास ग्रहण किया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सन्यास ग्रहण करने के बाद अब उन्हें स्वामी कमलानंद गिरि के रूप में जाना जाता है।

 

 

 

सेना में 6 साल तक रहे अधिकारी
डॉ. कमल टावरी का जन्म 1 अगस्त 1946 को महाराष्ट्र के वर्धा में हुआ था. उनमें बचपन से ही कुछ अलग करने का जज्बा था. वह पहले भारतीय सेना में अधिकारी बने. यहां छह साल तक सेवाएं दी. वह सेना में कर्नल थे. इसके बाद साल 1968 में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास करके आईएएस अधिकारी बने.

 

 

 

22 साल तक रहे आईएएस
डॉ. कमल टावरी यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी थे. उन्होंने 22 साल तक एक आईएएस अधिकारी के रूप में विभिन्न पदों पर सेवाएं दी थी. कम टावरी ग्रामीण विकास, ग्रामोद्योग, पंचायती राज, खादी, उच्चस्तरीय लोक प्रशिक्षण जैसे विभागों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे. वह भारत सरकार में सचिव पद पर भी रहे. कमल टावरी के बारे में कहा जाता है कि सरकार उन्हें सजा के तौर पर किसी पिछड़े इलाके या विभाग में भेजती थी तो वह अपनी कार्यशैली से उसे भी महत्वपूर्ण बना दिया करते थे.

 

 

 

 

डॉ. कमल टावरी ने 40 किताबें लिखी हैं. उनकी योग्यता की बात करें तो उन्होंने इकोनॉमिक्स में पीएचडी की है. साथ ही एलएलबी भी किया है.
सम्मान के लिए 29 साल लड़ी लड़ाई
साल 1983 में कमल टावरी और आईपीएस एसएम नसीम एक संदिग्ध बस का पीछा कर रहे थे. यूपी रोडवेज की बस थी. 15 किलोमीटर पीछा करने के बस रोकने में कामयाब रहे. लेकिन इसके बाद बस ड्राइवर और कंडक्टर ने दोनों अधिकारियों पर बुरी तरह हमला कर दिया. टावरी ने इसकी

शिकायत पुलिस में की. मामला कोर्ट में पहुंचा. कुछ साल बाद केस की फाइल ही गुम हो गई. इसके बाद डॉ. कमल टावरी इलाहाबाद हाईकोर्ट गए और अंतत: 29 साल बाद 26 मार्च 2012 को केस का फैसला आया. आरोपियों को तीन-तीन साल कैद की सजा हुई. कमल टावरी का मानना था कि जो अधिकारी जिले भर का मालिक है वह अपने साथ हुई अभद्रता पर शांत कैसे रह सकता है.

 

 

कमल टावरी पहनते हैं सिर्फ खादी
डॉ. कमल टावरी की शख्सियत का अंदाजा एक और घटना से लगा सकते हैं. ग्राम्य विकास सचिव पद पर रहते हुए उन्होंने एक दिन संकल्प ले लिया कि अब वह सिर्फ खादी ही पहनेंगे. इसके बाद से उन्होंने खादी ही पहनी है आज तक.

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