1. क्या होती है डिवाइन फेमिनिन एनर्जी?
हमारी सृष्टि में दो तरह की ऊर्जा काम करती है, चाहे वो प्रकृति हो या मनुष्य। पहली ऊर्जा सृजन के लिये उत्तरदायी होती है जिसे ‘दिव्य-स्त्री शक्ति/ऊर्जा (डिवाइन फेमिनिन एनर्जी)’ कहते हैं जबकि दूसरी ऊर्जा कर्म प्रधान होती है जिसे ‘दिव्य-पुरुष शक्ति/ऊर्जा (डिवाइन मैस्कुलिन एनर्जी)’ कहते हैं। प्रकृति में उदाहरण के तौर पर आप आकाश और धरती को ले सकते हैं। आकाश को पुरुष ऊर्जा से जोड़ा गया है जबकि धरती को स्त्री ऊर्जा से, क्योंकि धरती हमें पोषण देती है, कई चीजों को जन्म देती है। इसलिए हमलोग धरती को मां की संज्ञा देते हैं। इन दोनों ही ऊर्जाओं के संतुलन से ये पूरी सृष्टि चलती है। अगर इसमें से एक भी अपना संतुलन खो दे, तो ये सृष्टि तहस-नहस हो सकती है।
2. क्या होती है डिवाइन फेमिनिन एनर्जी?
अध्यात्म का मानना है कि मनुष्य के शरीर में भी इन दोनों तरह की दिव्य-ऊर्जाएं समान रूप से हैं। आपने शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप के बारे में तो सुना ही होगा। उनके ‘अर्धनारीश्वर’ स्वरूप का अर्थ है कि ‘पुरुष-ऊर्जा’ के रूप में उनके आधे शरीर में ‘शिव’ का वास है जबकि ‘स्त्री-ऊर्जा’ के रूप में ‘शक्ति’ का। आपने ये भी सुना होगा कि ‘शक्ति’ के बिना ‘शिव’ अधूरे हैं। ये कहने का अर्थ यही है कि शरीर के सुचारू रूप से संचालन के लिए उनमें ‘शिव और शक्ति’ यानि ‘पुरुष-ऊर्जा और स्त्री-ऊर्जा’, दोनों का संतुलन आवश्यक है। यही अवधारणा समान रूप से साधारण मनुष्य पर भी लागू होती है। हर मनुष्य लिंग से चाहे वो लड़का हो या लड़की हो, उनका आधा अस्तित्व स्त्री-ऊर्जा और आधा पुरुष-ऊर्जा से बना है। ये दिव्य-ऊर्जाएं आपके शरीर में समान रूप से बंटी हैं और आपके संपूर्ण अस्तित्व का निर्माण करती हैं।
3. क्या होती है डिवाइन फेमिनिन एनर्जी?
आपके अंदर दया, करुणा, रचना या सृजन से जुड़ी जो भी शक्ति होती है, वो स्त्री-ऊर्जा पैदा करती है। आपका शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, भावनात्मक सभी विकास स्त्री-ऊर्जा ही करती है। हमारे अंदर की ‘शक्ति-ऊर्जा’ ही ‘प्राण-ऊर्जा’ है, जो हमारे जीवन को संचालित करती है। जब आप किसी भी प्रकार के स्वास्थ्य-लाभ के लिए या अपनी शारीरिक और मानसिक विकृति को ठीक करने के लिए शरीर में मौजूद सात चक्रों को जागृत करते हैं, तब ये शक्ति-ऊर्जा भी जागृत हो जाती है और शिव आपकी चेतना में ध्यान लगाये बैठे होते हैं। शिव ही शक्ति के ऊर्जावान प्रवाह को दिशा देते हैं। आपमें अगर इन दोनों दिव्य-ऊर्जाओं के बीच थोड़ा भी असंतुलन पैदा होता है, तो आपका शरीर कई कष्टों से गुजरने लगता है, खासकर दिल से जुड़ी चीजें।
4. हम दिनोंदिन अपनी ‘दिव्य स्त्री-शक्ति’ को दबाते जा रहे हैं
पहले कई समाजों और सभ्यताओं में प्रतीकात्मक ‘दिव्य स्त्री-शक्ति’ की पूजा होती थी, चाहे वो पृथ्वी हो, चंद्रमा हो, वृक्ष हो या समुद्र हो। ये प्रकृति, मानव को सदियों से पोषण देती आई है। इसलिए कई धर्मों में शक्ति रूप में देवियों की भी पूजा होती थी, लेकिन अब समाज धीरे-धीरे पितृसत्तात्मक सोच की तरह ज्यादा झुक रहा है जिससे कई मुसीबतें पैदा हो रही हैं। कुछ लोग जहां भूखों मर रहे हैं, वहीं कुछ लोग क्रूर होते जा रहे हैं। इस असंतुलन से प्रकृति से लेकर मनुष्य तक के स्वभाव में परिवर्तन आ गया है। हम दिनोंदिन अपनी ‘दिव्य स्त्री-शक्ति’ को दबाते जा रहे हैं या कमजोर करते जा रहे हैं। यह दिव्य स्त्री-शक्ति हमारे अंदर ही है लेकिन हम इसका अनुभव नहीं कर पा रहे। तो चलिए जानते हैं कुछ ऐसे तरीके जिससे हम अपने अंदर की इस ‘दिव्य स्त्री-शक्ति’ को जागृत कर सकते हैं-
5. तरीके जिससे हम अपने अंदर की इस ‘दिव्य स्त्री-शक्ति’ को जागृत कर सकते हैं
1. हिंदू धर्म में कई देवियां हैं जो शक्ति-ऊर्जा का प्रतीक हैं। उनसे जुड़े कई मंत्र भी हैं जो कंपन के द्वारा आपमें शक्ति-ऊर्जा को जागृत करते हैं। आप उन मंत्रों का जाप करके खुद में स्त्री-ऊर्जा के पॉवर को महसूस कर सकते हैं।
2. शक्ति, ब्रह्मांड की रचनात्मक ऊर्जा है। शक्ति-ऊर्जा की प्रधानता आपके जीवन को अर्थ प्रदान करती है। इसलिए आपको रचनात्मक या जनकल्याण जैसे कार्यों से जुड़ना चाहिए ताकि आपके अंदर दबी स्त्री-ऊर्जा सामने आए।
3. ‘शक्ति-ऊर्जा’ को ‘कुंडलिनी ऊर्जा’ भी कहा गया है। ‘कुंडलिनी ऊर्जा’ आपके अंदर की दिव्य स्त्री-ऊर्जा की जागृति का सबसे प्रभावी अभ्यास है लेकिन यह किसी मास्टर के निर्देशन में ही करना चाहिये वरना आपकी कुंडलिनी शक्ति की ऊर्जा असंतुलित हो सकती है। अगर चक्रों की बात करें, तो स्वाधिष्ठान-चक्र मनुष्य में आनंद, रचनात्मकता और स्त्री-ऊर्जा का केंद्र होता है। यह चक्र, नाभि से लगभग 4 अंगुल नीचे स्थित होता है। इस चक्र को जागृत करके भी स्त्री-ऊर्जा के प्रवाह को अपने भीतर बढ़ा सकते हैं।
6. तरीके जिससे हम अपने अंदर की इस ‘दिव्य स्त्री-शक्ति’ को जागृत कर सकते हैं
4. ‘शक्ति-मुद्रा’, शक्ति ऊर्जा को ही जागृत करने के लिए की जाती है। यह हाथ की एक मुद्रा है, जिसे मन को शांत करने के लिए किया जाता है। इस मुद्रा की अवस्था आपको धरती से जोड़ती है और अंदर की शक्ति-ऊर्जा को संतुलित भी करती है। आप खुद में शक्ति-ऊर्जा को जागृत करने के लिए इस मुद्रा का अभ्यास कर सकते हैं। 5. आप जितना संभव हो, प्रकृति के करीब जाएं। खुद की भावनाओं को दबाने की बजाय उन्हें सशक्त करें।