रायपुर। छत्तीसगढ़ के लोग हर त्योहार को बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। कई त्योहार तो ऐसे होते हैं जो केवल छग में ही मनाए जाते है। उन्हीं त्योहारों में से एक त्योहार हरेली है। जिसका अपना ही विशेष महत्व है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार भी माना जाता है लेकिन ऐसा क्यों? तो आइए जानते हैं कि इस त्योहार का क्या महत्व है और क्यों मनाते हैं? ग्रामीण क्षेत्रों में यह त्यौहार परंपरागत् रूप से उत्साह के साथ मनाया जाता है। बस्तर में यही त्यौहार अमूस तिहार के नाम से मनाया जाता है।
इस दिन किसान खेती-किसानी में उपयोग आने वाले कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं गांव में बच्चे और युवा गेड़ी का आनंद लेते हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर लोक महत्व के इस पर्व पर सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया गया है।
अलग-अलग राज्यों में विभिन्न नामों से जाना जाता है ये त्योहार
हरेला त्योहार हरियाली त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। छत्तीसगढ़ के अलावा ये त्योहार उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में, झारखंड में हरियाली त्योहार के रूप में, मनाया जाता है। वहीं उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में ये त्योहार प्रमुखता से मनाया जाता है। हरेला त्यौहार उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है। उत्तराखंड में इस त्योहार को हरेला त्योहार कहते हैं तो वहीं मप्र में हरियाली त्योहार के नाम से जाना जाता है।
हरेली त्यौहार की मान्यताएं
हरेली त्यौहार को पारम्परिक एवं लोक पर्व माना जाता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार सुरक्षा के लिए घरों के बाहर नीम की पत्तियां लगाई जाती हैं। इस दिन धरती माता की पूजा कर हम भरण पोषण के लिए उनका आभार व्यक्त करते हैं। पारंपरिक तरीके से लोग गेड़ी चढ़कर हरेली की खुशियां मनाते हैं। छत्तीसगढ़ में हरेली त्योहार को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। हरेली त्यौहार के दिन किसान अपनी खेती बाड़ी में काम आने वाली सभी औजार हल, फावड़ा, कुदाली और आधुनिक कृषि यंत्र जैसे ट्रेक्टर आदि को को नहलाकर पूजा की जाती है। बस्तर में यही त्यौहार अमूस तिहार के नाम से मनाया जाता है। हरेली उत्सव छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध उत्सवों में से एक है।
यह छत्तीसगढ़ का एक पुराना पारंपरिक त्योहार है जो हिन्दुओं के पवित्र महीने श्रावण व शुरुआत का प्रतीक है। हरेली त्योहार वास्तव में वर्ष के मॉनसून पर केंद्रि फसल का त्योहार है। हरेली अमावस्या को कोई भी किसान अपने खेतों में कार्य नहीं करते हैं इस दिन खेती कार्य करना वर्जित है। हरेली त्यौहार को गेड़ी चढ़ने का त्योहार भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन लोग बांस की लकड़ी से गेड़ी बनाकर गेड़ी चढ़ते हैं , गेड़ी चढ़ने का आनंद ही अलग है लोग इस दिन गेड़ी चढ़कर आनंद उत्सव मनाते हैं।
कब मनाया जाएगा ये त्योहार
श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या को हरेली त्योहार मनाया जाता है। जुलाई के महीने में यह त्यौहार पड़ता है। पानी बरसने के बाद खेतों में फसल हरी-भरी हो जाती है तब यह त्यौहार मनाते हैं। इस वर्ष हरेली त्यौहार 17 जुलाई सोमवार को मनाया जाएगा। हरेली त्यौहार छत्तीसगढ़ बस्तर प्रमुख त्यौहार माना जाता है। हरेली अमावस्या के दिन होने के साथ-साथ कृषि पर आधारित इस त्यौहार को हरेली तिहार के माध्यम से छत्तीसगढ़ी संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के उद्देश्य से भी राज्य में मनाने का निर्णय लिया गया है।
हरेला में 7 या 5 किस्म के अनाजों का इस्तेमाल
हरेला बोने के लिए हरेला त्योहार से 12 से 15 दिन पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं। घर के पास साफ जगह से मिट्टी निकाल कर सुखाई जाती है और उसे छानकर रख लिया जाता है। हरेला में 7 या 5 किस्म के अनाज का मिलाकर बोया जाता है। इसमें धान, मक्की, उड़द, गहत, तिल और भट्ट शामिल होते हैं। इसे मंदिर के कोने में रखा जाता है। इसे बोने से लेकर देखभाल तक घर की महिलाएं करती हैं। इस दिन पकवान बनाए जाते हैं।
हरेली त्योहार पर बनाए जाते हैं ये प्रमुख व्यंजन
छत्तीसगढ़ लोकपर्व के साथ लोक व्यंजनों के लिए भी जाना जाता है, छत्तीसगढ़ में हरेली के लिए भी कुछ खास व्यंजन हर घर में पकाए जाते हैं, जैसे- गुड़ के चीले, ठेठरी, खुरमी और गुलगुला भजिया।