नई दिल्ली. शालिनी कुमारी। आज के समय में महिलाओं के खिलाफ जुर्म बढ़ता जा रहा है। आए दिन अखबारों और समाचार पत्रों में महिलाओं के साथ हुए अपराध की खबरें छाई रहती हैं। कहीं महिलाओं के साथ दुष्कर्म करके उन्हें मरता छोड़ दिया जाता है और कई बार तो यह भी सुनने में आया है कि महिला के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है। दुष्कर्म किसी भी महिला की जिंदगी का सबसे डरावना पल होता है।
आपको बता दें दुष्कर्म के श्रेणी में भी कई तरह के अपराध शामिल है। जैसे वैवाहिक दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म और डिजिटल दुष्कर्म आदि। आपको बता दें, डिजिटल दुष्कर्म के मामले साफ तौर पर सामने नहीं आते हैं। साथ ही, इसको लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल भी आते हैं, क्योंकि इस शब्द का प्रचलन काफी कम है और खबरों में भी ऐसे मामले काफी कम देखने को मिलते हैं, लेकिन आपको बता दें कि डिजिटल दुष्कर्म किसी भी महिला को अंदर तक झकझोर कर रख देता है।
इस खबर में हम आपको डिजिटल दुष्कर्म के बारे में बताएंगे कि आखिर इसका क्या मतलब होता है, भारत में इसको लेकर क्या नियम-कानून और सजा है।
क्या होता है डिजिटल दुष्कर्म?
डिजिटल दुष्कर्म शब्द सुनकर लोगों के मन में आता है कि किसी महिला के साथ डिजिटल तरीके से दुष्कर्म किया गया हो, जैसे सोशल मीडिया पर उसकी तस्वीर और वीडियो शेयर करना या फोन पर किसी महिला को प्रताड़ित करना। हालांकि, आपको बता दें कि डिजिटल दुष्कर्म में डिजिट का अर्थ होता है अंगूठा, उंगली या पैर का अंगूठा।
डिजिटल दुष्कर्म, ऐसा घिनौना अपराध है, जिसमें व्यक्ति के इजाजत के बिना किसी के साथ अपनी उंगलियों या पैर के अंगूठे से पेनिट्रेशन करना है। अगर कोई शख्स महिला की बिना सहमति के उसके प्राइवेट पार्ट्स को अपनी अंगुलियों या अंगूठे से छेड़ता है, तो ये डिजिटल दुष्कर्म कहलाता है।
कब प्रचलन में आया ये शब्द?
दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद से डिजिटल दुष्कर्म शब्द प्रचलन में आया है। दरअसल, इसके खिलाफ कानून बनाने के लिए कोर्ट में डिजिटल दुष्कर्म शब्द का इस्तेमाल किया गया था। साल 2012 से पहले डिजिटल दुष्कर्म की जगह छेड़खानी शब्द का इस्तेमाल किया जाता था।
2013 में इसके खिलाफ कानून बनाया गया और फिर इसको सेक्शन 375 और पोक्सो एक्ट की श्रेणी में शामिल कर दिया गया। आमतौर पर कह सकते हैं कि साल 2013 के बाद दुष्कर्म का मतलब सिर्फ संभोग ही नहीं रहा, बल्कि इसमें कई नियम जोड़े जा चुके हैं।
भारत में डिजिटल दुष्कर्म को लेकर क्या है प्रावधान?
डिजिटल दुष्कर्म के मामले में देखा गया है कि अधिकतर वहीं व्यक्ति अपराधी होता है, जो पीड़िता या उसके परिवार के काफी करीब होता है। दरअसल, यहीं कारण है कि डिजिटल दुष्कर्म के बहुत कम मामले सामने आते हैं। आज भी कई लोगों को डिजिटल दुष्कर्म के बारे में नहीं पता होता, लोगों को इस बात की जानकारी ही नहीं होती है कि कानून में ऐसा कोई शब्द भी है और इसे अपराध की श्रेणी में भी रखा गया है।
डिजिटल दुष्कर्म के मामलों में धारा 354 और 376 के साथ यदि पीड़िता नाबालिग है, तो पॉक्सो एक्ट भी लगाया जाता है। भारतीय कानून के मुताबिक, डिजिटल दुष्कर्म के अपराधी को कम से कम पांच साल की जेल हो सकती है। वहीं, अगर संगीन तरीके से इस अपराध को अंजाम दिया गया है, तो ऐसे में अपराधी को 10 साल तक की भी जेल हो सकती है। इसके अलावा, अगर अपराधी ने डिजिटल दुष्कर्म के अलावा कोई और अपराध भी किया है और वो उसमें जोड़ दिए जाए, तो अपराधी को आजीवन कारावास की सजा होती है।
कैसे करें शिकायत?
जब भी कोई बच्चा बैड टच के बारे में बात करें, तो अभिभावकों को इस बात को संज्ञान में लेना चाहिए। इसके लिए अभिभावक चाहे, तो पास के किसी भी थाने या महिला थाने में जाकर इसकी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसके बाद वो पुलिस की जिम्मेदारी बन जाती है कि वे अपराधी के खिलाफ सख्त कदम उठाए।