सालों की मेहनत के बाद चंद ही प्रतियोगी सफल होते हैं। ऐसे में इसे अपना करियर चुनने से पहले कुछ बातों पर विचार जरूर करें, ताकि आप भविष्य की बेहतर योजना बना सकें। बता रहे हैं डॉ. विजेंद्र सिंह चौहान
एक सवाल यह है कि आखिर किसे सिविल सेवक बनने की कोशिश करनी चाहिए? क्या हर किसी को इस बात पर आंख मूंदकर विश्वास कर लेना चाहिए कि जो भी परिश्रम करता है, सफल अवश्य होता है और जीवन के पांच-दस साल होम कर देने चाहिए या पहले एक सही करना चाहिए कि आप यह अधिकारी बनना भी चाहते हैं या बस दूसरों की नकल करते हुए आप भी यह सपना देखते हैं? इन सब भेड़ चाल किस्म के कारणों से ऐसी परीक्षा की कड़ी चुनौती को लेना कहीं से भी समझदारी नहीं है।
पहले ईमानदारी से आकलन करिए कि यह नौकरी क्यों करना चाहतेहैं? अनेक परीक्षार्थी इस परीक्षा के तहत प्रारम्भिक परीक्षा में सिविल सेवा अभिरुचि परीक्षा में असफल हो जाते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें, तो परीक्षा दे तो रहे होते हैं, लेकिन उनकी अभिरुचि सिविल सेवा में न होकर कुछ और होती है। ऐसे विद्यार्थियों को अपना ध्यान अपनी अभिरुचि के करियर पर लगाना चाहिए।
एक पतली-दुबली लड़की के लिए एक रौबदार व्यक्ति गाड़ी का दरवाजा आगे बढ़कर खोलता है और पास खड़े जवान उसे सैल्यूट मारते हैं…। सोशल मीडिया के विविध मंचों पर रील्स आदि में आईएएस अधिकारियों की साख जताती ऐसी सामग्री को देखकर किसी भी युवा के मन में भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी बनने की चाह पैदा होना स्वाभाविक है।
इन सेवाओं में नियुक्ति देश की एक सबसे कठिन मानी जाने वाली परीक्षा यानी भारतीय सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से होती है, जिसे एक संवैधानिक संस्था, संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा संचालित किया जाता है।
हर साल लाखों प्रतियोगी इस परीक्षा में बैठते हैं और प्रारम्भिक, मुख्य परीक्षा तथा पर्सनैलिटी टेस्ट (इंटरव्यू) के बाद चंद प्रतियोगियों का चयन होता है। मसूरी की एकैडेमी में प्रशिक्षण के लिए चयनित होते हैं-लगभग छह सात सौ से एक हजार मात्र। इनमें से भी आईएएस और आईपीएस जैसी सेवाएं तो शीर्ष के दो-तीन सौ प्रतियोगियों को ही मिलती हैं।
सच्चाई यही है कि इस परीक्षा को पास करना एक मुश्किल सपने का सच होना है। हैरानी नहीं कि देश के दूर-दराज में यह परीक्षा किसी लॉटरी की तरह देखी जाती है, जिससे एकाएक कोई रंक से राजा हो जाता है। लेकिन, अकसर हम भूल जाते हैं कि कोई भी सफलता लॉटरी का टिकट नहीं होती, वह एक लंबी प्रक्रिया का परिणाम होती है।
हर साल चंद सफल प्रत्याशियों के अलावा लाखों अन्य प्रतियोगी भी होते हैं, जिन्हें सफलता नहीं मिली होती। इन लाखों असफलताओं की कहानी भी सीख देती है। इसीलिए जरूरी है कि प्रतियोगी इस जंग में कूदने से पहले कुछ बातों पर विचार कर लें।
कुछ सवाल खुद से करें
क्षमता एवं संसाधन की सोचें : सिविल सेवा परीक्षा में प्रतियोगी की अब तक की शिक्षा और प्रशिक्षण, पढ़ने-खेलने व अतिरिक्त गतिविधियों के लिए मिले अवसर, व्यक्तित्व विकास, आर्थिक सामाजिक हालात, मार्गदर्शन, कोचिंग, मेंटरिंग की उपलब्धता से भी सफलता पर बहुत असर पड़ता है। यह मार्कशीट में दर्ज नहीं होता, लेकिन निर्णायक होता है। इसी तरह वे परीक्षार्थी, जो समसामयिक घटनाओं व खबरों पर नजर नहीं रखते तथा इनके विषय में दृष्टिकोण विकसित नहीं कर पाते उनके लिए ऐसी परीक्षा में सफलता पाना निहायत मुश्किल हो सकता है। इसलिए प्रतियोगियों को अपनी क्षमताओं और सीमाओं का ईमानदार आकलन करके देखना चाहिए तथा इसी आधार पर तय करना चाहिए कि वे कब इस परीक्षा के लिए तैयार हैं।
निजी गुणों पर नजर डालें : प्रत्येक प्रतियोगी को यह भी आकलन करना चाहिए कि उनके व्यक्तित्व में धैर्य, संयम, परिश्रम जैसे गुण किस मात्रा में हैं। छोटी-छोटी दिक्कतों से निराशा में घिर जाने वाले परीक्षार्थियों के लिए ये यात्रा बहुत त्रासद हो जाती है।
इसी तरह ईमानदारी, आत्मालोचन की क्षमता, संवेदनशीलता, समावेशी और संतुलित चरित्र यानी जाति, धर्म व लिंग के आधार पर भेदभाव न करना जैसे गुण, इन सेवाओं के लिए जरूरी हैं। व्यक्तित्व के ये पहलू साक्षात्कार चरण में सफलता के लिए तो जरूरी हैं ही, बल्कि तैयारी के चरण में सह प्रतियोगियों से सामंजस्य के लिए भी अनिवार्य हैं।